चोट (कविता)
मैंने पत्थरों को
रोते देखा है ।
चट्टानों के कलेजों से आँसू
लुढ़कते देखा है।
बलवान रही होंगी शिलाएँ,
मैंने उन्हें भी
टूटते-बिखरते
देखा है ।
बद्दुआओं ने
बख्शा नहीं पाषाण को भी।
मैंने सिसकते हृदय की
हाय से
पूरा जीवन सुलगते देखा है।
प्रेरणा-अंशु अक्टूबर 2024 अंक में प्रकाशित
©️ पल्लवी गुप्ता 🌷
1 comment:
Very nice
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