19 October 2024

चोट (कविता)


चोट  (कविता)




मैंने पत्थरों को
रोते देखा है ।

चट्टानों के कलेजों से आँसू
लुढ़कते देखा है।
बलवान रही होंगी शिलाएँ,
मैंने उन्हें भी
टूटते-बिखरते
देखा है ।

बद्दुआओं ने
बख्शा नहीं पाषाण को भी।

मैंने सिसकते हृदय की
हाय से
पूरा जीवन सुलगते देखा है।


प्रेरणा-अंशु अक्टूबर 2024 अंक में प्रकाशित 
©️ पल्लवी गुप्ता 🌷