कोई शिक्षक होता है, तो कोई समाज सेवक । कोई लेखक होता है, तो कोई संपादक । कुछ राजनीतिज्ञ होते हैं, तो कुछ शिक्षणविद । कोई शिक्षा के सिद्धांतों का निर्माण करता है, तो कोई संस्थाओं का। कुछ लोग समाज की अच्छाइयों को दीमक की तरह चाट जाने वाले रुढिवाद को निर्मूल कर देना चाहते हैं, तो कुछ वर्तमान राजनीति से भ्रष्टाचार को। किंतु जब हम बात करते हैं डॉ. मफतलाल जेठालाल पटेल की, हमें उनके चरित्र में व्यक्तित्व के ये सारे आयाम पूर्ण रूप से सिद्ध दिखाई पड़ते हैं।
Simple Living - High Thinking का अनुसरण करने वाले डॉ. मफतलाल पटेल ने पांचवी कक्षा की बाल्यावस्था में ही बाल विवाह न करना, दहेज न लेना, सुवर्ण का त्याग, साटे-पाटे के विवाह का त्याग, विवाह संबंधित निरर्थक खर्चों के त्याग... आदि का दढ संकल्प लिया, जिनका न केवल अपने विवाह में ही, किंतु अपने बच्चों के विवाह में भी अचूक पालन किया। सिर्फ रु. १०० में गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री तथा उत्तरप्रदेश की समकालीन राज्यपाल आनंदीबेन पटेल से विवाह किया ।
सिर्फ अपने जीवन और घर से ही कुरिवाजों को नहीं उखाड़ फेंका, किंतु महिलाओं का सामाजिक स्तर सुधारने में तथा जन-जन में नारी के सम्मान की जागृति लाने के लिए निरंतर कार्यान्वित रहे। महिलाओं के उत्कर्ष के लिए, 'महिला और मानव अधिकार' (२०१५) कि जिसमें जिलाओं के तथा ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में महिलाओं का महत्त्व तथा उनके कानूनी अधिकारकास विस्तार से चर्चा की गई है, तदोपरांत 'दीकरीने उडवा पांखों तो आपो' कार की को उड़ने के लिए पंख तो दें) (२०१९), 'दादानी दीकरीओ' (दादा की बीटिया (२०१५) जैसे अनेक लेखों तथा ग्रंथों द्वारा नारी कल्याण की ज्योति जलाते रहे।
उनके विचार समाज में सिर्फ नारी की स्थिति तक ही सीमित नहीं हैं। उन्होंने पूरे-पूरे गाँव तक का उद्धार किया है। उन्होंने १९८५ में गुजरात के धंधुका तहसील के हरिपुरा नामक एक अशिक्षित, पिछडे हुए गाँव को दत्तक लिया। अपने सूझ-बूझ और सिद्धांतों से उसे एक आदर्श गाँव बनाया। इस गांव का एक भी व्यक्ति अशिक्षित, बेकार या व्यसनी नहीं है। हर घर किसी ना किसी प्रकार के गृह उद्योग से सुशोभित है । ग्रामोत्थान के इस वंदनीय कार्य के लिए उन्हें 'हरिपुरा के गांधी' के नाम से सम्मानित किया गया है।
वे एक आदर्श शिक्षक रहे हैं। हिंदी, संस्कृत तथा मनोविज्ञान के विशारद ने प्राथमिक शाला से लेकर हाई स्कूल शिक्षणकार्य किया और फिर हिंदी एवं मनोविज्ञान के अध्यापक रहे। व्यावसायिक सफर सिर्फ इतना ही सीमित नहीं है।। अहमदाबाद जिला पंचायत शिक्षा समिति के प्रमुख के रूप में वे लगातार चार बार बहुमत से जीत कर २० साल तक सेवा कार्य करते रहें। उनकी सिखाई गई शिक्षा नीतियों का आज भी गुजरात शिक्षा बोर्ड अनुसरण करता है। इस दौरान उन्होंने अहमदाबाद जिले की १०६५ स्कूलों की कायापलट की है। अहमदाबाद जिले का कोई स्कूल नहीं जिसकी उन्होंने मुलाकात न ली हो। यह गाँधीवादी विचारक एक कुशल और इमानदार राजनीतिज्ञ भी हैं। सन् १९८१ में अहमदाबाद जिला पंचायत की सीट पर भाजपा की ओर से जीतने वाले प्रथम कार्यकर्ता है। फिर निरंतर २० सालों तक अर्थात् १९८१ से २००० तक बहुमत से विजयी रहे। बचपन से ही पिता के उच्च गुणों को धारण करने वाले डॉ. मफतलाल पटेल ने अपना राजनैतिक जीवन भ्रष्टाचार से बेदाग होकर बिताया। उन्होंने साबित कर दिखाया कि अगर व्यक्ति चाहे तो अपनी आधुनिक विचारधारा को अटल निश्चय के साथ अपने जीवन में उतार कर अपना आचरण भले ही संघर्षपूर्ण, किंतु निश्छल रखे तो वह समाज में लोगों का आदर और विश्वास जरूर प्राप्त कर सकता है।
उन्होंने अपने जन्म स्थल महेसाणा जिले के विसनगर तहसील में 'कड़ा' गाँव में एक सार्वजनिक पुस्तकालय का भी निर्माण किया। चार मंजिला वाला यह पुस्तकालय आधुनिक सुविधाओं से सज्ज है। ग्राउंड फ्लोर पर पुस्तकें और पाठकों की बैठक व्यवस्था है। दूसरी मंजिल कम्प्यूटर लैब से सुसज्ज है तथा तीसरी मंजिल में प्रोजेक्टर तथा आधुनिक फर्निचर हैं जो स्पर्धात्मक परीक्षार्थियों के लिए काफी उपयोगी है। चौथी मंजिल का निर्माण अभी कुछ समय पूर्व ही हुआ जिसे स्मृति सांस्कृतिक भवन कहते हैं। इन बहुआयामी व्यक्तित्व के कृतियों की सूचि जिस प्रकार बहुत लंबी है, वैसे ही उनके लेखन तथा प्रकाशन की सूचि भी काफी लंबी है। जिसे संक्षिप्त टिप्पणी में समा लेना काफी कठिन है।
डो. मफतलाल पटेल एक सिद्धहस्त लेखक तथा संपादक भी हैं। उन्होंने 'अचला एजुकेशन फाउंडेशन ट्रस्ट' की स्थापना की। सन् २००१ से नियमित प्रकाशित अचला मेगेजीन के तंत्री है, जिसमें समकालीन शिक्षा प्रवाह, गतिविधियाँ, समस्याओं पर चिंतन, इत्यादि की विस्तृत चर्चा के साथ-साथ शिक्षाविदों का मार्गदर्शन भी उपलब्ध रहता है। इसके उपरांत उन्होंने 'प्रगतिशील शिक्षण', 'केलवणी', 'जीवन शिक्षण', 'घरशाला', 'सारस्वत' जैसे अनेक शैक्षणिक सामयिकों में गुणवत्तायुक्त योगदान दिया है। पाटीदार समाज के मुखपत्र 'धरती' में भी महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। 'शिक्षण क्षेत्रे सूर्योदय' (२०१६) नामक ग्रंथ में ६४ शिक्षाविदों के चिंतनात्मक लेखों का संपादन किया। 'प्रगति' (२०१७) में स्मिट कार्डन के ग्रंथ का संपादन किया ।
इतना ही नहीं, उन्होंने अनुवाद कार्य में भी अपना बहुमूल्य योगदान दिया है। एच. जी. वेल्स की आठ कहानियों का 'वर्ल्ड बेस्ट स्टोरीज' (२०२०) के नाम से अंग्रेजी से गुजराती में अनुवाद किया है। कई चिंतनात्मक लेख लिखे, जैसे कि 'चालो, जीवी लईए. (२०२०), 'जीवन ने सुमधुर बनाववाना राजमार्गो' (२०१५), 'संकल्प बल' (२०१३), 'विचार बल' (२०१६), 'टिक्स एन्ड किड्स' (१९९२) जैसे कई ग्रंथों का लेखन कार्य किया। लोकजागृति के लिए 'समाज को बदल डालो' नाटक की रचना की।
हिंदी साहित्य के प्रथम मनोवैज्ञानिक उपन्यासकारों जैनेन्द्र, इलाचंद्र जोशी, अजेय, इत्यादि के औपन्यासिक पात्रों का दर्शन और शिल्प के परिप्रेक्ष्य में मनोवैज्ञानिक विश्लेषण भी किया है।
हिन्दी उपन्यासकारों की प्रथम श्रेणी के उत्कृष्ट अपन्यासकार श्री जैनेन्द्रजी के बारे में डॉ. मफतलाल पटेल कहते है कि, मनुष्य के मन की पर्तें खोलकर तह में छिपी हुई गांठें खोलने और पिघलाने में श्री जैनेन्द्र सिद्धहस्त कलाकार हैं। वे अंतर्मुखी व्यक्तित्व का दर्शन करवाते हैं। डो. मफतलाल पटेल ने जैनेन्द्र के 'सुनीता' (१९६४), 'त्यागपत्र' (१९३७), 'कल्याणी' (१९३९) 'सुखदा' (१९५२) जैसे चरित्र प्रधान उपन्यासों के पात्रों की कथनी और करनी की बारीकाई से मनोविश्लेषण प्रस्तुत किया है।
'सुनीता' उपन्यास में किसी अन्य पुरुष की मानसिक कुंठाएँ खोल कर उसके व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास के लिए किस प्रकार एक स्त्री अपना सब कुछ उसे समर्पित कर देती है. इस मानसिक स्थिति का खूब सुंदर विश्लेषण किया गया है। हो. पटेल 'त्यागपत्र' की मुख्य नायिका मृणाल के जीवन का विश्लेषण करते हुए कहते हैं कि उसकी खरी त्रासदी ना ही उसके अनाथ होने में है और ना ही भूख तिल-तिल मरने में हैं। परंतु उसके यह है कि वह एक अपने अमेड पति को समर्पित होने के बावजूद है यातना तो अविन व्यतीत करने को बाध्य है। एक सीधी सरल सती स्त्री को अपवित्रता च कलंक लगाकर घर से निकाल दिया जाता है तथा नर्क से बदतर यातनाओं के साथ तड़प-तड़प कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।
मृणाल अपने साथ किए गए सभी अन्याय को मौन रहकर सहती है, कहीं कोई विरोध नहीं करती । स्कूल मास्टर से मार खाना, सैली के भाई से प्रेम की बात पर अपनी भाभी से पीटा जाना, सभी इच्छाओं का गला घोटकर एक अधेड विधुर से विवाह, निर्दोष होने के बावजूद पति द्वारा घर से निकाले जाना और सामाजिक उत्पीडन की हर घटना को मौन रहकर सहने वाली मृणाल की मानसिकता का विश्लेषण करते हुए डॉ. पटेल कहते है कि मनुष्य ना तो स्वयं को बदल सकता है और ना बाहरी दुनिया को । वह केवल अपनी स्थिति की व्याख्या कर सकता है।
श्री जैनेन्द्र के सुप्रसिद्ध उपन्यास 'कल्याणी' में मुख्य नायिका कल्याणी के चरित्र और मनोवृत्तियों की व्याख्या करते हुए वे कहते हैं कि स्त्री सदैव अपने पति से प्रेम चाहती हैं। यदि उसे वह प्रेम ना मिला तो परपुरुष या धर्म में प्रेम ढूंढती है। असफलता मिलने पर स्वयं को कोसती है, पीटती है। कहती है, "में सब भूल जाना चाहती हूँ। मैं खुद से नफरत करना चाहती हूँ।" डॉ. पटेल कल्याणी को एक ऐसी स्त्री का ज्वलंत उदाहरण बताते हैं जो जीवन से नाराज, हताश और असंतुष्ट है ।
श्री अज्ञेयजी को हिंदी के महान मनोवैज्ञानिक उपन्यासकार बताते हुए डॉ. पटेल कहते हैं कि अज्ञेय ने अपने पात्रों के मनोविश्लेषण के आधार पर कथा साहित्य का प्रासाद खड़ा किया है। अज्ञेयजी के 'शेखर - एक जीवनी' उपन्यास के मुख्य पात्र शेखर का विश्लेषण करते हुए डॉ. पटेल कहते हैं कि व्यक्ति के चरित्र निर्माण की नींव उसके बचपन के प्रथम ५ वर्ष में है। माता पिता के रोज के क्रूर झगडों में शेखर ने अपना बचपन खो दिया। निर्दोष इच्छाएँ और बाल सहज भावनाओं के दमन के परिणामस्वरुप उसमें एक अपराधी का जन्म हुआ । डॉ. पटेल 'शेखर - एक जीवनी' को हिंदी उपन्यास साहित्य में एक नए प्रयोग के रुप में प्रमाणित करते हैं।
अज्ञेयजी के एक अन्य उपन्यास 'नदी के द्वीप' की मुख्य नायिकार रेखा के बारे में डॉ. पटेल लिखते हैं कि रेखा एक ऐसी स्त्री है जिसकी तुलना में अन्य किसी भी उपन्यास का कोई भी पात्र खड़ा नहीं रह सकता। वह एक विचारशील नारी है, जो सामाजिक विचारधारा को चुनौती देती है। तीन अलग-अलग पुरुषों के संसर्ग में जीवन व्यतित करने के बावजूद वह चरित्रहीन नहीं है। रेखा एक विशेष चरित्र का प्रतिबिंब है।
दर्शन और शिल्प के परिप्रेक्ष्य में इलाचंद्र जोशीजी के उपन्यासों का मनोविश्लेषण करते हुए डॉ. पटेल कहते हैं कि, "जोशीजी ने मानवी के अवचेतन में दबी हुई अतृप्त वासनाओं का चित्र खींचकर यह बताया है कि, इंसान के व्यवहार में अवचेतन का प्रभाव सबसे अधिक है।"
जोशीजी के लेखन की समीक्षा करते हुए वे कहते हैं कि जोशीजी मनोविज्ञान के सिद्धांतों को सामने रख कर उपन्यास लिखते हैं। 'सन्यासी' उपन्यास का मुख्य नायक नन्दकिशोर का कुण्ठित अहंकार, ईर्ष्या तथा शंकाशील प्रकृति का रुप धारण कर लेता है। असफलता, ईर्ष्या, अपनी शक्तिहीनता का ज्ञान, असंतोष और हाहाकार के बीच उसके अहंकार ने उसे सदा जलते रहने के लिए छोड़ दिया ।
इसी प्रकार 'पर्दे की रानी' में निरंजना का विश्लेषण करते हुए डॉ. पटेल कहते हैं कि, "वर्तमान युग में केवल व्यक्तिगत प्रभाव की ही बोलबाला नहीं है, किन्सु अहम् से जन्मी प्रतिहिंसा का परिणाम महायुद्धों के नाशलीला में परिणत होता है। मनुष्य को कृत्रिम शिक्षा और संस्कृति को त्यागकर स्वस्थ, सबल, सहज और स्वाभाविक बुद्धि स्तर पर आना होगा।"
डॉ. पटेल के बहुआयामी व्यक्तित्व के बारे में जितना लिखा जाय, कम ही है। हिन्दी ओपन्यसिक पात्रों के चरित्र का मनोविश्लेषण उनसे बेहतर और कोई नहीं कर सकता। उनकी दीर्घायु और बेहतर स्वास्थ्य के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ ।
'ગ્રંથવૈભવ, ડૉ. મફતલાલ પટેલના સાહિત્યાસ્વાદનો સંચય', 2021 में प्रकाशित;
प्रकरण: 51; पेज नंबर: 246-250.
©️ पल्लवी गुप्ता 🌷