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20 October 2024

कूपमण्डूक (कविता)

कूपमण्डूक (कविता)



 बाहर
 तेज हवाएँ
 कभी खून जला देती हैं
 तो
 कभी बर्फ सी जमा देतीं हैं।

रोशनी आंँखें खोलने नहीं देती
और
घटती बढ़ती चाँदनी डराती है।

नहीं नहीं
मैं बाहर नहीं जाऊंगा।

दुनिया मेरी छोटी ही सही।
भूखे पेट इस दलदल में ही
सो जाऊंगा।

ना तो किसीका शिकार करूंगा
और ना ही बनूंगा।

'प्रेरणा अंशु' अक्टूबर 24 कविता विशेषांक में प्रकाशित
©️पल्लवी 🌷

19 October 2024

चोट (कविता)


चोट  (कविता)




मैंने पत्थरों को
रोते देखा है ।

चट्टानों के कलेजों से आँसू
लुढ़कते देखा है।
बलवान रही होंगी शिलाएँ,
मैंने उन्हें भी
टूटते-बिखरते
देखा है ।

बद्दुआओं ने
बख्शा नहीं पाषाण को भी।

मैंने सिसकते हृदय की
हाय से
पूरा जीवन सुलगते देखा है।


प्रेरणा-अंशु अक्टूबर 2024 अंक में प्रकाशित 
©️ पल्लवी गुप्ता 🌷