24 September 2023

मातृ-अंतरमन



'मातृ-अंतरमन'
(कविता)

मैं अपने बच्चों से एक वादा रोज लेना चाहती हूंँ
कहीं वे बड़े ना हो जाएँ इस बात से डरती हूंँ।
  
जब वे सोते हैं, जी करता है उन्हें उठाने को; 
रूठे तो मनाने को, कहूँ मुझे फिर से सताने को।
 
उनकी प्यारी निश्चल यह कोमल-कोमल बातें;
थोड़ी कच्ची लेकिन मन की सच्ची बातें ।
मैं उन्हें गोद में उठा फिर से झुलाना चाहती हूंँ;
कहीं वे बड़े ना हो जाए इस बात से डरती हूँ।

जीवन-चक्र, समय, यह युग यूँ ही चलता रहे;
बच्चों की लीलाओं से मेरा घर-आँगन फलता रहे।

पल में भोले, पल में लगे जैसे मेरे नाना-नानी;
कितनी प्यारी उनकी जिद है, बातें लगती सयानी।
उनकी हर अदा पर न्यौछावर रहना चाहती हूँ।
कहीं वे बड़े ना हो जाएँ इस बात से डरती हूँ।

'जीवन-पथ' जून 2019 में प्रकाशित एक कविता 'मातृ-अंतरमन'
पल्लवी गुप्ता 🌷

No comments: