ऊष्मा
कहानी
"मम्मी मेरा बर्थ डे आने वाला है, ना ? मुझे गिफ्ट में झालर वाला फ्रॉक देना।"
"फ्रॉक? जो रक्खा है उसका क्या करेंगे, बेटा?"
"फिट होते हैं मुझे। एक साल में कपड़े छोटे नहीं हो जाएँगे क्या, मम्मी?"
"हाँ, बेटा! लॉकडाउन में तो सब के कपड़े छोटे और फिट हो गए हैं। तुम्हारे बर्थडे पर जब तुम्हारी चाची आएँगी तो गरिमा के लिए उन्हें सारे छोटे कपड़े दे देने पड़ेंगे। सब नए ही तो हैं।"
"हाँ, मम्मी यही ठीक है।"
शाम को जब पापा आए तो तेरह वर्षीय रिद्धी ने चहकते हुए पापा से पूछा,
"पापा, दस दिन बाद क्या है?"
"मेरी गुड़ियारानी का जन्मदिन।"
"पापा, मुझे लॉन्ग कोट ला देंगे? आपने पीछले बर्थडे पर भी कहा था और फिर आज तक नहीं लाए।"
"हाँ, बेटा, ला दूँगा। अभी आया हूँ। फ्रेश तो होने दो।"
रिद्धि खुश होकर साइकिल पर चक्कर लगाने बाहर निकली। घर से कुछ दूर सड़क पर पहुँची तो उसका स्कर्ट साइकिल की चैन में फँस गया। वह गिर पड़ी। मगर गिरी तो उसका स्कार्फ किनारे के बबूल की झाड़ियों में फँस गया। उसे चोट आई। वह पूरी तरह से ना तो जमीन पर नीचे गिरी हुई थी ना ही झाड़ी में लटकी हुई। सँभल नहीं पा रही थी। उठना मुश्किल था। रूँवासी हो इधर-उधर देखने लगी।
सड़क के किनारे के खुले मैदान में एक अधनँगा लड़का कभी उसकी ओर देख रहा था तो कभी अपनी उड़ती हुई पतंग की ओर।
एक हाथ में उड़ती पतंग संभाले उस तक पहुँचा। अपना हाथ लँबाया और कहा, "उठो।
लेकिन हाथ लँबा कर लड़के के हाथ को पकड़ पाना मुश्किल था। नहीं कर पाई। और रोने लगी। कमर से नीचे उतरती हुई, जगह-जगह से फटी हुई पेंट पहने हुए काला कलूटा लगभग ग्यारह साल का लड़का, जो ना जाने कितने दिनों से नहाया तक नहीं होगा, फिर से चिल्लाया,
"मैडमजी, उठिए! मेरी पतंग छूटी जा रही है। पूरे पाँच दिनों की लूट के बाद एक पतंग उड़ाने मिली है, वह भी कट जाएगी, अगर मैंने नहीं संभाला तो।"
पतंग और रिद्धि की जिम्मेदारियों के बीच लड़का धर्मसंकट में पड़ गया।
रिद्धि अब चिल्लाकर रोने लगी। उसने तुरंत पतंग छोड़ उसे दोनों हाथों से उठाया। रिध्धी उठी। अपने आप को सँभाला। अपने कपड़ों को देखा और उस लड़के पर फिर चिल्लाई,
"यह क्या किया? मेरे नए-नए स्कर्ट पर अपने काले हाथ का धब्बा क्यों लगा दिया? मैं नहीं पहनूँगी अब इसे।"
"तो मुझे दे दो मैडम। मैं गले में लिपटा लूँगा। वैसे भी यह पूस की ठंड जान ही ले लेगी।"
झल्लाकर उसने साइकिल घुमाई और चल पड़ी घर की ओर । घर आकर मम्मी को सब बताया और फिर कपड़े बदलने अँदर गई। कोहनी और घुटने पर लगी खरोंच देख उसे लड़के ने फैलाया हुआ हाथ याद आया। उसका गँदा मटमैला हाथ! उसका ध्यान उसकी स्कर्ट पर पड़ा। इस बार उसे गुस्सा नहीं आया। काला धब्बा देख उसे लड़के का काला नँगा तन याद आया। "आखिर इस ठंडी में वह कैसे रहता होगा!" उसे एक-एक कर लड़के की सारी बातें याद आईं।
अगले दिन शाम को वह जींस-टोप पहन निकल पड़ी सड़क पर साइकिल की सैर करने। उसने वहाँ, उसी मैदान में फिर से कुछ लड़कों को पतंग के लिए दौड़ते और छीनाझपटी करते हुए देखा। अधनँगे, काले, मटमैले लड़कों के बीच उसने उस लड़के को पहचान लिया। पतंग के लिए झगड़ते हुए वह गिर पड़ा था और पतंग फट गई थी। रिद्धि वहीं से वापस घर लौट आई।
अपने पॉकेट-मनी का पर्स निकाला। सारा पैसा गिन डाला। कुछ सोचने लगी। मम्मी के पास जाकर पूछा,
"मम्मी फ्रॉक कितने की आएगी?" माँ-बेटी के बीच कुछ हिसाब हुआ। वह बोली,
"मुझे फ्रॉक मत दो। उतने पैसे मैरे पॉकेट-मनी में डाल दो। पापा और चाची से भी कह दो कि कोई गिफ्ट ना दें। उनसे पैसे मुझे पॉकेट मनी में दे दो। मेरी स्कूल के लिए चोकलेट के पैसे भी पाॅकेट-मनी में दे दो।"
बात कुछ समझदारी वाली लगी। मम्मी मान गईं। बर्थडे आया। वैसे ही हुआ जैसा वह चाहती थी। बर्थडे सादगी से मना कर भी वह उत्साहित थी। बर्थ डे पार्टी को लेकर उसके निर्णय में आये हुए बदलाव को देख मम्मी-पापा के आश्चर्यचकित थे I कारण जान कर हेरान तो हुए , किन्तु बिटिया की समजदारी पर खुश थेI दूसरे दिन सारा परिवार पेंट-शर्ट, स्वेटर और कुछ पतंगे खरीद उसी खुले मैदान में उस लडके को ढूंढते हुए पहुँच गए।
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प्रेरणा-अंशु जनवरी' २४ में प्रकाशित मेरी कहानी
©️ पल्लवी गुप्ता 🌷
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