लघुकथा
स्कूल की पोशाक पहने हुए दो लड़के दौड़ते-दौड़ते चाय की केतली पर आकर रुक गए।
"आजाद! चल, मेम बुला रही हैं।" हांफते-हांफते उन्होंने आवाज लगाई।
"नहीं, नहीं! मैं नहीं आऊंगा! मालिक मारेगा। उसने आज दिन भर दुकान छोड़ने के लिए मना किया है।" एक ग्राहक को चाय-खारी देते हुए उसने कहा।
"अरे, चलना भाई। तेरा नंबर आया है, कुछ तो इनाम मिलेगा ही।"
पड़ोस में ही था स्कूल। कप-कितली फेंक, दौड़ कर स्कूल पहुंच जाना था उसे। पल भर के लिए उसका मन स्कूल के आंगन में अरमानों के पंख लगा घूम आया। माता पिता के जीते जी उनके साथ बिताए हुए सुनहरे पल उसके मन को बेचैन करने लगे।
"एक कटिंग चाय....।" आए हुए नए ग्राहक ने आवाज लगाई। उसका संमोहन टूटा । उज्जवल भविष्य की उम्मीदों ने वहीं दम तोड़ दिया। और उसका मन वर्तमान की कड़वाहट से फिर भर गया।
"जाओ तुम लोग। अभी अगर मैं कहीं गया तो मालिक ये कपड़े वापस ले लेगा। शाम को मुझे खाने नहीं देगा। दुकान से निकाल देगा तो मैं रात में कहां सोऊंगा।"उदासी ने उसके चेहरे को और शुष्क कर दिया।
इसी निर्दोष नोकझोंक के बीच स्कूल से माइक की तेज और स्पष्ट आवाज उनके कानों में पड़ी। "स्वतंत्रता और मौलिक अधिकार' निबंध-लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार पाया है, आठवीं कक्षा के होनहार विद्यार्थी आजाद ने!
उत्तराखंड से प्रकाशित राष्ट्रीय मासिक पत्रिका 'प्रेरणा-अंशु' के 'लघुकथा विशेषांक' में प्रकाशित मेरी लघुकथा
©️पल्लवी गुप्ता 🌷
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